
ये कहानी रोहिणी और उसके दोस्त अर्जुन की है। उस दिन अर्जुन अपनी पत्नी रोहिणी की बेटी को लेकर अपने घर आये थे। सन्योग से रोहिणी घर पर छुट्टी थी। उस दिन समुद्र में कुछ अलग था, जैसे कोई अनकही बाते हवा में तैर रही हो।
जब रोहिणी रसोई में खाना बना रही थी, अर्जुन पास बैठे थे और बोले थे, अरे माजी आपकी तो बहुत बढ़िया काकाठी बनी है। रोहिणी ने वन्यजीव हसी के साथ जवाब दिया, तो क्या अब जंगली पक्षी दिखाई देने लगे?
अर्जुन ने कहा कि मेरा मतलब यह नहीं था कि अभी आप बहुत चिंतित हैं। रोहिणी ने ठंडी दुनिया लेते हुए कहा कि अब इस सौंदर्य की प्रयोगशाला में जब यह सरहने वाला ही चला गया। अर्जुन मुस्कुराया और बोला अरे माजी ऐसे मत
रोहिणी ने किया मजा-अंदाज में कहा बात तो सही कह रहे हो, मगर मैं हर किसी को ये खूबसूरत साज़िशें दोहराती रहती हूं, तो लोग इसकी आदत डाल देते हैं फिर, तो रोज ही कोई न कोई इसे देखेगा। अर्जुन ने सिर हिलाया और मस्क पर अपनी सहमति व्यक्त की
लेकिन अर्जुन के लिए कुछ चीजें सिर्फ खास लोगों के लिए ही होती हैं। हर किसी को नहीं दिया जा सकता। अर्जुन ने आखों में हलकी दिशा बताई, तो क्या मैं उन खास लोगों को शामिल करूंगा माजी। रोहिणी ने एक पल के लिए अपनी तरफ देखा, जैसे उसक
फिर हस्कर बोली अभी तुम मेरे मित्र हो अर्जुन। और फ्रांसिस का एक फर्ज होता है सास का सम्मान। अर्जुन ने कहा कि सम्मान तो मैं ही देता हूं, लेकिन कुछ रिश्ते वक्क के साथ और गहरे हो जाते हैं माजी। रोहिणी उनकी बात सुनक
और जो रिश्ते अपनी हद भूल जाते हैं, वे अक्सर मुश्किल में पड़ जाते हैं। सिर ने जुका लिया, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी वही अर्जुन था। उसने हलका करने के लिए कहा ठीक है माजी, आज तो सिर्फ खाना खाये, बाकी बातें फिर कभी
और इसी तरह उस दिन की हल्की फुल्की बातचीत खत्म हो गई लेकिन उनके बीच कुछ अनकही बातें अभी हवा में तैर रही थीं।
अर्जुन ने रोहिणी की ओर समुद्र तट पर खाना खाया। उसकी नजरों में एक अजीब सी गर्मी थी, जिसे रोहिणी भी महसूस कर रही थी, लेकिन अन्देखा करने की कोशिश कर रही थी। खाना ख़त्म होने के बाद अर्जुन ने कहा माजी, आपकी हा
तो फिर अपनी उंगली से भी कहो थोड़ा सीख ले, ताकि आपके रोज कुछ नया खाने को मिले। अर्जुन ने हस्ते हुए कहा सीखने को, तो मैं आप से भी बहुत कुछ चाहता हूँ। लेकिन कुछ चीज़े केवल अनुभव से ही आती है ना। रोहिणी, उसकी बात का मतलब
अर्जुन ने अपनी प्लेट रख दी और धीरे-धीरे कहा सच कहूं माजी कुछ खास दिल से आती है और उन्हें दिखाने के लिए उन्हें जरूरत नहीं है रोहिणी का दिल हलकासा धड़क उठा लेकिन उन्होंने खुद को पकड़ लिया वो सीखी थी कि ये बातचीत अब ऐसे एक मो
अर्जुन ने उसे देखा। उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी, मानो ये कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी, बल्कि इसकी असली सूर्यास्त अब होने वाली थी। रोहिणी चाय बनाने के लिए रसोइया में चला गया, लेकिन उसका मन कुछ ऐश हो गया
उसने खुद को कॉमिक्स की कोशिश की कि ये सब सिर्फ मजा था, लेकिन दिल के किसी कोने में एक हल्की हलचल थी। उधर अर्जुन अभी बाकी था, उसके नज़रे दरवाज़े पर टिकी थी, जहाँ से रोहिणी रसोई गई थी।
उसके चेहरे पर मखमली मुस्कान थी, जैसे वह किसी सोच में डूबा हो। कुछ देर बाद रोहिणी चाय लेकर आई और टेबल पर रखी गई बोली, लो अब चाय पियो और फिर आशियाने की तयारी करो। बहुत देर हो गयी.
अर्जुन ने कहा, माजी, आप हमेशा इतनी जल्दी में क्यों रहते हैं? कभी-कभी वक्त को भी थोड़ा थपथपाना चाहिए। रोहिणी ने अपनी बात हलकासा हसी और बोली में कुछ नी को खत्म करने का मतलब बताया, मुश्किलों को न्योता देना।