
अर्जुन ने अपनी आंखों में देखते हुए कहा और कुछ नीरसता को मौका देकर जिंदगी को एक नया रंग भी दे सकते हैं। रोहिणी ने अपनी आंखों से सेव की हुई चाय का स्वाद लिया और बोली, अर्जुन को पता है कि कुछ रिश्ते होते हैं और वह
या इंसान खुद उन्हें एक डायर में रखता है। रोहिणी ने गहरी सांस ली और टेबल से कहा, दोनों ने कहा। लेकिन इंसान वही होता है जो सही समय पर सही फैसला लेता है। अर्जुन उसकी दृष्टि देख रहा था लेकिन अब उसे समझ आया कि रोहिणी
जैसा कि आप शुरू करते हैं। कुछ देर बाद अर्जुन अपनी पत्नी के साथ घर लौट आए। लेकिन उस शाम जो अनकही हवा में रह गई थी, बात शायद उनके बीच की हमेशा के लिए किसी कोने में दबी रह गई। अर्जुन और उनकी पत्नी के जाने के बाद रोहिणी ने चा
अर्जुम की बातें और उसकी बातों में जो छिपा था उसे वह नजरंदाज नहीं कर पा रही थी। रात को जब घर में सब सो गए रोहिणी पर लेट कर अपनी आंखें बंद कर रही थी, लेकिन उसकी सोच वही रुक गई, जहां अर्जुम की बातें खत्म हो गईं
क्या सच में कुछ रिश्तों में एक सीमा होती है? क्या कभी किसी रिश्ते को लिटिल और फ्रैंक जीन की जरूरत नहीं पड़ती? अर्जुन की शरारतें और उनके संस्थापक अब भी उनकी यादों में गूंज रहे थे। वो खुद से कह रही थी, क्या मैं भी खुद को
सुबह की धूप चाय की खुशबू के साथ आया। रोहिणी ने खुद को कब्जे में ले लिया और फिर से रोज की शुरुआत की जैसे कुछ हुआ ही न हो। लेकिन दिल में गहरी गहराई वह इस बार अर्जुन की बातों से थोड़ा प्रभावित हुई थी।
एक दिन अर्जुन फिर से बिना स्वाभिमानी घर आये। रोहिणी चौंकी, लेकिन उसने अपना चेहरा समेधते हुए दरवाजा खोला। अर्जुन, तुम यहाँ? कुछ काम था? उसने आश्चर्यजनक आश्चर्य और आर्गेनिक के साथ पूछा। अर्जुन ने कहा, बी
क्या कुछ नहीं बदला जा सकता? रोहिणी ने अपनी आंखों में जहां का और फिर धीरे-धीरे कहे गए रिश्ते सच में बदलना चाहते हैं। अर्जुन, लेकिन हम उन्हें इस बदलाव के लिए क्या तैयार कर रहे हैं? अर्जुन के चेहरे पर हल्की डौचे और समच का मिलाजुला भाव था.
यही तो सबसे बड़ा सवाल है माजी. हम सच में क्या तयार हैं? रोहिणी का दिल फिर से धड़क उठा। ये सवाल अब उसके अंदर भी था. क्या सच में वह अपने रिश्ते को एक नए रूप में देख सकती थी? क्या वह उन कच्चे धागों को फिर से जोड़ सकता था, जो एस
अगर कुछ चीज उसके लिए पहले जैसी नहीं थी। ये एक नया मोर था, जहां रिश्ते नए अर्थ लेने को तय थे।